Vikas Ddubey Kanpur Police encounter news
योगीराज में क्राइम ‘आउट ऑफ कंट्रोल’, 25 साल से गुनाहों की दुनिया के साथ राजनीति में भी सक्रिय था पंडित विकास दुबे, मां ने बताया किन-किन पार्टियों में था शामिल
उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ ने सरकार की कमान संभालने के बाद कहा था कि वे उत्तर प्रदेश को अपराध मुक्त बनाएंगे। लेकिन उनके सारे दावे मानों खोखले साबित होते जा रहे हैं। हर रोज प्रदेश में कहीं न कहीं से बड़ी घटनाएं सामने आती हैं… ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि यूपी में गुंडा राज है।
विकास दुबे की दहशत का आलम ये है कि बिकरू में कोई उसका नाम लेने से भी घबराता है। यहां खौफ का दूसरा नाम विकास दुबे है। गांव में गुरुवार को हुई मुठभेड़ के बाद ग्रामीणों में दहशत है। हर कोई खामोश है। गांव की हर गली हर कोने पर पुलिस का पहरा है। गांव की सीमाओं पर आरएएफ तैनात है।
खौफ का दूसरा नाम है पंडित विकास दुबे, ग्रामीण बोले जो पुलिस को मार सकता है वो कुछ भी कर सकता है
कुछ ऐसा ही हुआ जब पुलिस की टीम ने गांव के कुछ लोगों से विकास के बारे में पूछा। एक गांव वाले ने कहा साहब…! हम गरीब लोग हैं। हमें माफ करो। मुझे कुछ नहीं कहना। अगर खिलाफत में मुंह खोला और वो जिंदा बच गया तो हम लोगों को मार डालेगा..। ग्रामीण बोले हम उसके बारे में कुछ नहीं बता सकते। जो पुलिस को मार सकता है, वो कुछ भी कर सकता है।
डर और दहशत भरे ये शब्द बिकरू गांव के एक शख्स के हैं। विकास की आतंक कुछ इस कदर है कि गांव वाले उससे खौफ खाते हैं। उसके खिलाफ एक भी शब्द बोलने से डरते हैं। यही वजह है कि जब ग्रामीणों से बातचीत करने का प्रयास किया गया तो उन्होंने बात करने से इंकार कर दिया।
उनका कहना था कि वह मेहनत मजदूरी करके परिवार पालते हैं। विकास से उनका कोई लेना देना नहीं है। इससे एक बात तो स्पष्ट हो गई कि दहशतगर्त का ग्रामीणों की जुबानों पर भी लगाम है। थाने में भाजपा नेता समेत पांच हत्या के केस विकास पर दर्ज हुए। इसके अलावा लूट, डकैती, हत्या केप्रयास समेत कुल 60 से अधिक केस हैं।
फिर भी उसके रुतबे में कोई कमी नहीं आई। जरायम की दुनिया में कदम रखने के बाद ही उसने अपना सम्राज्य खड़ा किया। करोड़ों का घर बनाया, गाड़ियां खरींदी और अरबोंकी संपत्ति बनाई। ऐसे में ग्रामीण इसलिए डरते हैं कि इतनी आपराधिक वारदातों में संलिप्त होने के बावजूद भी उसका कुछ नहीं हुआ तो आगे भी कुछ नहीं होगा।
काफी प्रयास करने के बाद गांव के एक शख्स ने तीन चार बातें कहीं। उसने कहा कि पुलिस बड़े लोगों की तरफ ही रहती है। विकास का पुलिस के साथ उठना बैठना रहता है। आज भी उनका कहना है कि पुलिस तीन चार दिन गांव में रहेगी, उसके बाद चली जाएगी। आगे की सुरक्षा की जिम्मेदारी कौन देगा। इसलिए ये लोग मुंह नहीं खोल रहे हैं। कुल मिलाकर विकास की दहशत इतनी है कि लोगों को पुलिस पर भरोसा नहीं है।
कानपुर एनकाउंटर: थाने से फोन आने के बाद विकास के सिर पर सवार हुआ खून, बोला आने दो, एक-एक को कफन में भेजूंगा
कानपुर के चौबेपुर में हुई मुठभेड़ में आठ पुलिसकर्मियों के शहीद होने के बाद पुलिस एक्शन में है। विकास के साथ रहने वाले असलहाधारी उसके साथी दयाशंकर को पुलिस ने मुठभेड़ के दौरान पैर में गोली मारी है। दयाशंकर ने पूछताछ में बताया कि जब विकास के पास थाने से किसी का फोन आया था तभी उसने कहा था सभी को कफन में भेजूंगा।
विकास दुबे ने अपने शिक्षक को भी न बख्शा, दी थी दर्दनाक मौत, जहां पढ़ा उसी स्कूल की जमीन कब्जाई
विकास दुबे के आतंक को कोई नजदीक से महसूस कर पाया है तो वो है शिवली के ताराचंद्र इंटर कॉलेज के सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य सिद्धेश्वर पांडेय का परिवार। विकास ने 11 नवंबर वर्ष 2000 को इंटर कॉलेज के बगल में एक खाली प्लाट में दिनदहाड़े सिद्धेश्वर पांडेय की हत्या कर दी थी।
हत्या की वजह वही जमीन थी। सिद्धेश्वर पांडेय इंटर कॉलेज की खाली पड़ी जमीन पर डिग्री कॉलेज बनाना चाहते थे, जबकि विकास की नजर उस पर कब्जा करने की थी। सिद्धेश्वर पांडेय साफ स्वच्छ छवि के सेवानिवृत्त शिक्षक थे। दूर-दूर तक उनका सम्मान था। विकास भी उसी स्कूल में पढ़ा था। उन्हें कतई उम्मीद नहीं थी कि उनका पढ़ाया लड़का एक दिन उन्हीं की जान ले लेगा।
स्कूल की जमीन पर विकास का कब्जा
शिवली के ताराचंद्र इंटर कॉलेज की खाली पड़ी जमीन पर अब विकास के गुर्गों का कब्जा है। बताते हैं कि इन पर बनी दुकानों का किराया विकास ही वसूलता है। लोग खुद जाकर उसके गुर्गों को किराया सौंपते हैं। गांव के लोगों का कहना है कि प्रशासन कॉलेज की जमीन पर हुए कब्जे को भी मुक्त कराए, ताकि लोगों को विकास के आतंक से राहत मिले।
कानपुर एनकाउंटर में चौंकाने वाला खुलासा, विकास दुबे पर 71 केस, फिर भी पुलिस की नजर में अपराधी नहीं
पांच हत्याओं का आरोपी, 71 केस फिर भी पुलिस विकास दुबे को अपराधी नहीं मानती। विकास का नाम शहर या थाने की टॉप-10 अपराधियों की सूची में भी नहीं है। इतना बड़ा आपराधिक इतिहास होने के बावजूद उसका गैंग तक रजिस्टर्ड नहीं किया गया। ये गंभीर लापरवाही उन तमाम पुलिस अधिकारियों की है जो शहर में आए और चले गए लेकिन विकास पर सबकी नरमी रही। तीन दशक के एसएसपी समेत अन्य आलाधिकारी और उसके निचले स्तर के अधिकारी इसके लिए जिम्मेदार हैं।
विकास दुबे न तो शहर और न ही थाने स्तर की टॉप-10 अपराधियों की सूची में शामिल है। उसके नाम गैंग भी रजिस्टर्ड नहीं है। ये बात समझ से परे है। चौबेपुर एसओ से लेकर अधिकतर पुलिसकर्मी उसके संपर्क में थे। उसका थाने में आना-जाना भी रहता था। – दिनेश कुमार पी, एसएसपी
Vikas Dubey: रूस में पढ़ता है विकास का बेटा, लखनऊ में हैं पत्नी और दो बच्चे, छोटे भाई की बीवी दस साल से बिकरू प्रधान
विकास दुबे के एक भाई की हत्या हो चुकी है। पिता रामकुमार दुबे गांव में ही रहते हैं। इस वक्त वो मानसिक रूप से कमजोर हैं। रामकुमार दुबे के तीन पुत्र विकास दुबे, अवनीश और दीपू थे जिनमें दस साल पहले भूमि विवाद में अविनाश दुबे की हत्या हो चुकी है।
विकास दुबे की मां बोलीं पहले नेताओं ने अपराध करवाए, अब बन गए जान के दुश्मन
कानपुर के चौबेपुर में हुई मुठभेड़ में आठ पुलिसकर्मियों के शहीद होने के बाद कुख्यात अपराधी विकास दुबे को पुलिस हर उस ठिकाने पर ढूंढ रही है जहां कभी विकास ने कदम रखा है। पुलिस की पचास से अधिक टीमें विकास को ढूंढने के लिए पिछले 60 घंटों से लगातार दबिश दे रही हैं। विकास दुबे की मां ने बताया कैसे वो एक आम इंसान से यूपी का मोस्ट वांटेड अपराधी बन गया।
सरला ने बताया कि विकास करीब पांच साल भाजपा में, 15 साल बसपा और पांच साल सपा में रहा। उन्होंने सवाल उठाया कि अगर वह इतना ही खराब था तो राजनीतिक पार्टियों और उस वक्त के मुख्यमंत्रियों ने उसे अपने दल में शामिल क्यों किया? अगर नेता-नगरी उससे दूर रहती तो शायद विकास आज शांति से जीवन जी रहा होता। सरला ने बताया कि शुक्रवार को घर पर चूल्हा नहीं जला।
कानपुर में जो हुआ वह आतंकी घटना से कम नहीं, विकास दुबे के साथ आतंकवादियों जैसा ही सलूक होगा: आईजी
कानपुर में आठ पुलिसकर्मियों की हत्या के तीसरे दिन आईजी रेंज मोहित अग्रवाल तीसरी बार रविवार को फिर कानपुर के बिकरू गांव पहुंचे। वहां उन्होंने विकास दुबे के जमींदोज किलानुमा मकान का निरीक्षण किया। ऑपरेशन विकास की गतिविधियों के बारें में उन्होंने बताया कि राजस्थान, हरियाणा और बिहार में भी पुलिस टीमें बनाकर कांबिंग शुरू हो गई है।
इन सभी प्रदेशों के आईजी और डीआईजी सीधे संपर्क में हैं। इस चक्रव्यूह को भेद पाना आसान नहीं होगा। जल्द ही विकास दुबे पुलिस के शिकंजे में होगा। आईजी ने कहा कि यह किसी आतंकी घटना से कम नहीं है। विकास के साथ वही सलूक होगा जो एक आतंकवादी के साथ होता है।
कानपुर में कुख्यात अपराधी विकास दुबे के एनकाउंटर के दौरान हुए खूनी संघर्ष में सीओ सहित पुलिस के आठ जवान शहीद हो गए थे। अपराधियों ने पुलिस बल को चारों ओर से घेरकर ताबड़तोड़ गोलियां बरसा दी थी और आठ जवानों को मौत के घाट उतार दिया था। 24 घंटे बाद आई शव परीक्षण की रिपोर्ट में इस हमले को लेकर चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं। रिपोर्ट से पता चला है कि पुलिसकर्मियों पर किया गया हमला जितना दर्दनाक दिख रहा है, असलियत उससे कहीं ज्यादा क्रूरता भरी और रोंगटे खड़े कर देने वाली है।
शव परीक्षण की रिपोर्ट से पता चला है कि अपराधियों ने पुलिस पर गोरिल्ला शैली से हमला किया था। इसके बाद जिस तरह से उनके साथ माओवादियों की तरह क्रूरता की गई, उनके सिर में पिस्टल सटाकर कई बार गोलियां दागी गईं, उनके पैर काट दिए गए… आम तौर पर उत्तर प्रदेश में सक्रिय अपराधियों में ऐसी क्रूरता नहीं देखी जाती है।
शव परीक्षण में सामने आया है कि अपराधियों द्वारा किया गया यह हमला माओवादियों के ‘लाल आतंक’ फैलाने के तरीके से काफी मिलता जुलता है। पता चला है कि सीओ देवेंद्र मिश्रा के पैर की उंगलियों को कुल्हाड़ी से काटा गया था। इसके बाद उनके शव को निर्ममता से क्षत-विक्षत किया गया था।
Vikas Dubey: आपराधिक अकड़, राजनैतिक पकड़ विकास दुबे के दबदबे का आधार, ब्लाक प्रमुख बनने की थी चाहत, आरक्षण बन रहा था बाधा
आपराधिक हनक और राजनैतिक पकड़ से विकास दुबे वर्ष 2000 में ही घिमऊ जिला पंचायत चुनाव जीतकर शासनिक और प्रशासनिक गलियारों से सीधा जुड़ गया था, तब से उसकी शिवराजपुर विकास खंड की बिलहन, घिमऊ, जिला पंचायत के अलावा क्षेत्र पंचायत की लगभभ 56 सीटों और ग्राम पंचायत की 40 से अधिक सीटों पर सीधा दखल था। बीते 20 वर्षों में शिवराजपुर ब्लाक प्रमुख उसकी मर्जी का ही बना या यह कहें की उसी के आशीर्वाद से कुर्सी पाई।
यदि सरकार द्वारा उसकी मन पसंद सीट किसी अन्य जाति के लिए आरक्षित भी हो जाए तो विकास दुबे का आशीर्वाद ही प्रत्याशी को जीत का सर्टिफिकेट होता रहा है। वर्ष 2010 में बिकरू ग्राम पंचायत की सीट आरक्षित हो जाने पर निर्वाचित प्रधान रजनीकांत को विकास दुबे ने बुरी तरह पीट-पीटकर गांव से परिवार सहित भगा दिया था तब तत्कालीन डीएम ने ग्राम पंचायत समिति गठित की थी।
बिकरू ग्राम पंचायत में विकास दुबे की मनमर्जी बीते कई दशकों से चली आ रही है वर्ष 2005 में विकास के छोटे भाई दीपू दुबे की पत्नी अंजलि दुबे ग्राम प्रधान बनी थीं। सूत्र बताते हैं कि वर्ष 2010 में बिकरू ग्राम पंचायत सीट आरक्षित हो जाने पर गांव के ही रजनीकांत कुशवाहा पुत्र धनीराम विकास दुबे के आशीर्वाद से मिलने पर चुनाव तो जीत गए, लेकिन चुनाव जीतने के कुछ महीने बाद ही विकास दुबे से उसका विवाद हो गया। जान का खतरा देख रजनीकांत गांव छोड़कर भाग गया था और पूरे 5 साल गांव नहीं लौटा।
इसके बाद वर्ष 2015 में बिकरू सामान्य सीट होने पर फिर से उसके भाई की पत्नी अंजलि दुबे ग्राम पंचायत की प्रधान हैं। जानकारी के अनुसार अंजलि लखनऊ में ही रहती हैं और विकास और उसके गुर्गे ही प्रधानी चलाते हैं। विकास दुबे का एक पार्टी की पूर्व मंत्री से सीधा संबंध रहा है वर्ष 2000-05 में विकास के कहने पर ही बिलहन सीट से शरद कटियार चुनाव लड़े और रिकॉर्ड मतों से जीते।
इसके बाद वर्ष 2005-10 में बिलहन सीट पर विकास दुबे ने अपने चचेरे भाई अनुराग दुबे की पत्नी रीता दुबे को मैदान में उतारा और जीत हासिल की जबकि घिमऊ सीट आरक्षित हो जाने पर निवादा गांव निवासी शिवशंकर को जीत दिलाई। वर्ष 2010-15 घिमऊ और बिलहन दोनों सीटें आरक्षित होने पर और चौबेपुर-बिल्हौर विधायक के दबाब के बाद क्रमश: खुशीलाल पाल, गीता को जीत दिलाई।
वहीं 2015-20 में विकास दुबे की पत्नी रिचा दुबे घिमऊ से जिला पंचायत सदस्य हैं, जबकि आरक्षित बिलहन से अवधेश कोरी व मुस्ता से प्रियंका दिवाकर जिला पंचायत सदस्य हैं। विकास दुबे की शुरू से ही शिवराजपुर ब्लाक प्रमुख पद पर भी नजर रही है।
वर्ष 2005 में रिचा दुबे सखरेज से निर्विरोध क्षेत्र पंचायत सदस्य चुनी गईं, लेकिन आपराधिक इतिहास ब्लाक प्रमुख बनने में आड़े आ गया, तब विकास दुबे चुनाव के दौरान अंडर ग्राउंड हो गया था और उदयशंकर शुक्ल ब्लाक प्रमुख बने थे। वर्ष 2010 में एक पार्टी के कई विधायकों द्वारा प्रतिष्ठा लगा देने पर एक महिला को ब्लाक प्रमुख विकास दुबे की हामी भरने के बाद ही बनाया गया था जबकि वर्तमान में ब्लाक प्रमुख भी उन्ही के खेमे के बताए जाते हैं।





