mom movie review

कमजोर स्क्रिप्ट के साथ श्रीदेवी ने की जानदार वापसी ‘Mom’ Movie
‘मॉम’ फिल्म
निर्माताः बोनी कपूर
निर्देशकः रवि उदयावर
सितारेः श्रीदेवी, नवाजुद्दीन सिद्दिकी, सजल अली, अक्षय खन्ना, अदनान सिद्दिकी, अभिमन्यु सिंह
रेटिंग **1/2
‘मॉम’ को देखने की केवल एक वजह हो सकती है, श्रीदेवी। यह उनकी 300वीं फिल्म है। 53 साल की उम्र भी उनका आकर्षण और अभिनय का जादू बांधे रहता है। वह मां और पत्नी के रूप में जहां करुणामयी दिखती हैं, वहीं अत्याचारियों के विरुद्ध शेरनी की तरह गरजती हैं। वह ममता में बेहद कमजोर पड़कर फूट-फूट कर रोती हैं तो गुस्से में उनकी आंखों से आग बरसती है। निःसंदेह उनकी कोई टक्कर नहीं है।
2012 में आई ‘इंग्लिश विंग्लिश’ के बाद इंतजार था कि श्रीदेवी कब आएंगी? वह आ गई हैं। परंतु ‘इंग्लिश विंग्लिश’ जितनी ताजी, सामयिक और मौलिक थी, वह बात ‘मॉम’ में नहीं। स्त्रियों के विरुद्ध हिंसा और महिला सशक्तिकरण पर इधर लगातार फिल्में आई हैं। इनके बीच ‘मॉम’ कोई अनूठी छाप नहीं छोड़ती। साधारण कहानी के बाद आप इंतजार करते हैं कि शायद अंदाज-ए-बयां में कुछ बात हो, तो वह फिल्म बढ़ने के साथ लचर होता जाता है।
अचानक मसाला फिल्म बन जाती है ‘मॉम’
फिल्म दिल्ली में एक मां द्वारा अपनी सौतेली बेटी से हुए गैंगरेप के बदले की कहानी है। बायोलॉजी पढ़ाने वाली टीचर देवकी (श्रीदेवी) की सौतेली बेटी है आर्या (सजल अली)। जो देवकी को मां नहीं मानती। मैम कहती है। वेलेंटाइंस डे की रात को एक फार्महाउस पार्टी में गई आर्या देर रात तक घर नहीं लौटती। पार्टी में आए बिगड़ैलों ने उसका रेप किया है और सुबूतों के अपर्याप्त होने पर अदालत से बरी हो गए हैं। तब देवकी बदला लेने के लिए कमर कसती है। यह हिस्सा थोड़ा-सा रोचक है कि आखिर देवकी क्या और कैसे करेगी? यहां उसे जासूस डीके (नवाजुद्दीन सिद्दिकी) की मदद मिलती है। अपराधियों को सजा मिलने लगती है तो पुलिस इंस्पेक्टर (अक्षय खन्ना) की नजर देवकी और डीके पर टिकती है। यहां भी ट्विस्ट है लेकिन यहीं से कहानी कमजोर होती है और ‘मॉम’ अचानक मसाला फिल्म में बदलने लगती है।
‘मॉम’ की तीन अहम मुश्किलें हैं। पहली, आपको शुरुआत से पता है कि परिवार, पार्टी, पुलिस, अदालत में आगे क्या-क्या होगा। यहां कुछ रहस्य नहीं है। दूसरी, थ्रिलर होने के बावजूद फिल्म की रफ्तार बेहद धीमी है। तीसरी लंबाई, 147 मिनट। यह बातें श्रीदेवी और नवाज समेत बाकी ऐक्टरों के मंजे हुए अभिनय को जाया करती हैं। स्क्रिप्ट के पहले हिस्से का रोमांच दूसरे के शुरू होते-होते खत्म हो जाता है।
आखिरी मिनटों में मामला पूरा फिल्मी है। लेखक-निर्देशक रवि उदयावर की कथानक पर पकड़ क्रमशः कमजोर होती जाती है। ‘मॉम’ को 1990 के दशक की फिल्मों जैसा शूट किया गया। बैकग्राउंड स्कोर कुछ दृश्यों में बहुत शानदार है जबकि गानों का संगीत कानों में घुलता नहीं। दोनों काम ए.आर. रहमान के हैं। नवाज फिर छाप छोड़ते हैं जबकि अक्षय खन्ना और सजल अली अपनी भूमिकाओं में फिट हैं। अदनान सिद्दिकी के हिस्से एक भी ऐसा सीन नहीं कि उनकी धमक महसूस हो। कुल मिला कर ‘मॉम’ अपनी स्क्रिप्ट की वजह से कमजोर फिल्म साबित होती है, जिसका सबसे ठोस पक्ष श्रीदेवी हैं।





