Mafia used to make 60 thousand fake petrol and diesel every day in Meerut
ये है मेरठ के नकली पेट्रोल-डीजल तेल माफिया राजीव जैन और प्रदीप गुप्ता का असली सच, जलेबी के रंग से तैयार करते थे तेल
मेरठ में तेल माफिया जलेबी के रंग से नकली पेट्रोल और डीजल तैयार करते थे। फैक्टरी के अंदर जमीन में बड़े बड़े लोहे के टैंक दबे थे। जिसमें थिनर, सॉलवेंट और बैंजीन का मिश्रण होता था। उसके बाद जलेबी वाले रंग को इसमें मिलाया जाता था। मिश्रण का रंग पेट्रोल-डीजल जैसा हो जाता था। जिसके बाद इसको टैंकरों में नोजिल के जरिये भरा जाता था।
पुलिस के मुताबिक तेल माफिया राजीव जैन और प्रदीप गुप्ता से नकली पेट्रोल-डीजल बनाने का तरीका पूछा। दोनों तेल माफिया ने बताया कि उनके पास थिनर और सॉलवेंट का लाइसेंस है। करीब दस साल से थिनर और सॉलवेंट में रंग मिलाकर वह नकली तेल बनाते हैं। इसकी किसी को भनक न लग जाए, इसको लेकर आबादी से दूर फैक्टरी बनाई।
बताया गया कि फैक्टरी में पांच-छह कर्मचारी ही सारा काम करते थे, क्योंकि अधिकांश काम मशीनों के जरिये ही होता था। जिसका दोनों तेल माफिया ने डेमो भी करके दिखाया। जमीन में दबे टैंक में थिनर, सॉलवेंट व बैंजीन नोजिल पंपों के जरिये डाला जाता था, जिसमें जलेबी का रंग मिलाया जाता था। रंग मिलते ही नकली पेट्रोल-डीजल तैयार हो जाता था। एक टैंकर तेल में करीब 30 से 40 फीसदी नकली पेट्रोल-डीजल को मिलाया जाता था। उसके बाद ही वह टैंकर पेट्रोल पंप पर जाता था।
एक साथ तैयार होता 11 हजार लीटर तेल
पूछताछ में तेल माफिया राजीव जैन और प्रदीप गुप्ता ने बताया कि एक साथ करीब 11 हजार लीटर नकली तेल तैयार हो जाता है। क्योंकि थिनर और सॉलवेंट टैंकरों से आता है। एक टैंकर में करीब 11 हजार लीटर तेल आता है। उसको देखते हुए एक साथ इतनी भारी मात्रा में नकली तेल तैयार होता है। करीब चार-पांच टैंकर रोजाना एक फैक्टरी में तैयार होता है।
फैक्टरी में सुबह से लगती लाइन
इंडियन आयल कॉरपोरेशन द्वारा पेट्रोल-डीजल से भरे टैंकर सुबह से तेल माफियाओं की फैक्टरी में आने शुरू होते हैं। असली पेट्रोल और डीजल को ड्रमों में भरा जाता है। 30-40 फीसदी पेट्रोल निकालने के बाद नकली तेल टैंकर में नोजिल पंप से भरा जाता है। उसके बाद पेट्रोल पंपों पर यह टैंकर पहुंचते है। प्रारंभिक जांच में नकली तेल पकड़ में आसानी से नहीं आता।
पंजाब और हरियाणा से आते केमिकल
पुलिस ने बताया कि तेल माफियाओं का नेटवर्क यूपी के अलावा दूसरे राज्यों में है। पूछताछ में बताया है कि केमिकल बैंजीन को वह पंजाब स्थित बहादुरगढ़ सौपला पीडी इंडस्ट्रीज और सेचुरे हिड हाईड्रोकार्बन आमुबेल कंपनी बरनाला पंजाब से खरीदते है। जहां पर टैंकरों में भरकर पेट्रोल पंप मालिक राजीव जैन व प्रदीप गुप्ता की फैक्टरी में आता था। उसके बाद नकली पेट्रोल-डीजल बनाया जाता था।
हर रोज 60 हजार लीटर नकली पेट्रोल-डीजल बना रहे थे माफिया, अब हुए कई बड़े खुलासे
नकली पेट्रोल-डीजल बनाने के काले खेल की परतें लगातार उधड़ती जा रही हैं। माफिया की दो फैक्टरियों से रोजाना करीब 60 हजार लीटर नकली तेल बन रहा था, जो कि 1.40 लाख लीटर पेट्रोल-डीजल में मिलाया जाता था। इस तरह रोज दो लाख लीटर मिलावटी तेल बनाकर पंपों पर सप्लाई किया जा रहा था। एसआईटी की जांच अगर ठीक से हो जाए तो कई सफेदपोश, पुलिस-प्रशासन के अफसरों के नाम इस खेल में उजागर हो सकते हैं।
मेरठ के पेट्रोल पंपों पर रोजाना 4.75 लाख लीटर तेल बेचा जाता है। एसआईटी (स्पेशल इंवेस्टीगेशन टीम) प्रभारी अविनाश पांडेय (एसपी देहात) ने शुक्रवार को जांच शुरू करा दी। टीम में शामिल दो इंस्पेक्टरों को अपने ऑफिस में बुलाकर बात की। बताया गया कि राजीव जैन और प्रदीप गुप्ता की केमिकल फैक्टरी में थिनर, सॉल्वेंट और बैंजीन केमिकल में फूड कलर मिलाकर रोजाना करीब 60 हजार लीटर नकली तेल तैयार किया जा रहा था। पेट्रोल पंपों पर ऑयल कंपनियों के डिपो से आने वाले पेट्रोल-डीजल से भरे टैंकर दोनों तेल माफिया की फैक्टरी पर जाते थे। एक टैंकर (12 हजार लीटर) से 30 फीसदी या उससे अधिक तेल निकालकर उसमें उतना ही नकली तेल भर दिया जाता था। इसके बाद ये टैंकर पेट्रोल पंपों पर पहुंचाए जाते थे।
कई जांच के घेरे में
दो लाख लीटर मिलावटी तेल रोजाना पेट्रोल पंपों तक पहुंचाने तक कितने विभागों के अधिकारी शामिल हैं, इसकी जांच बेहद जरूरी है। पुलिस, आपूर्ति विभाग, ऑयल कंपनी की भूमिका पूरी तरह संदिग्ध है। एसआईटी ने संबंधित विभागों के अधिकारियों की भूमिका तलाशनी शुरू कर दी है।
लाल डायरी खोलेगी काले कारनामे
टीपीनगर थानाक्षेत्र में पारस केमिकल फैक्टरी में छापे के दौरान पुलिस को एक लाल डायरी हाथ लगी थी। पुलिस की फैंटम से लेकर दरोगा, जिला आपूर्ति विभाग के इंस्पेक्टरों तक के नाम इसमें लिखे हैं। यह भी साफ-साफ लिखा है कि किसको कितना पैसा जाता है। डायरी के आधार पर संबंधित लोगों से पूछताछ हो सकती है। डायरी को एसआईटी से दूर रखने की बात सामने आ रही है, जिससे पुलिस सवालों के घेरे में है।
बैंक खातों और कॉल डिटेल की जांच
पुलिस का दावा है कि नकली तेल मेरठ में 10 पेट्रोल पंपों पर सप्लाई होता था। जेल भेजे गए दस आरोपियों समेत 13 लोगों के मोबाइल की पुलिस कॉल डिटेल निकलवा रही है। इससे पोल खुलेगी कि किस-किस पेट्रोल पंप पर नकली तेल खपाया जा रहा था।
एसआईटी ने जांच शुरू कर दी है। नकली पेट्रोल-डीजल बनाने और पंपों तक सप्लाई करने में कौन-कौन से विभाग के अधिकारी शामिल हैं, इसको एसआईटी उजागर करेगी। दोनों केमिकल फैक्टरी में रोज दो लाख लीटर मिलावटी तेल तैयार होने की बात सामने आई है। – अजय साहनी, एसएसपी
यहां दशकों से चल रहा नकली पेट्रोल-डीजल का काला कारोबार, अमर उजाला ने कई बार किया खुलासा
यूपी के मेरठ जिले में मिलावटी और नकली पेट्रोल-डीजल का काला कारोबार शहर के दो सफेदपोश पीढ़ी-दर-पीढ़ी कई दशकों से करते आ रहे हैं। अमर उजाला ने भी इस खेल का स्टिंग के जरिये कई बार खुलासा किया। लेकिन इन सफेदपोशों की सरकारी तंत्र में इतनी गहरी पैठ है कि कभी इनका कुछ नहीं बिगड़ा। साठगांठ में यह धंधा बढ़ता ही गया।
नकली व मिलावटी पेट्रोल-डीजल का धंधा करीब तीन दशक से हो रहा है। शहर के बड़े तेल माफिया इसके सरगना हैं। इनकी शह पर कुछ अन्य लोगों ने भी हाथ आजमाने शुरू किए। पेट्रोल बनाने का तरीका तो साल्वेंट के साथ पुराना है, लेकिन डीजल बनाने के तरीके में बदलाव आया है। पहले डीजल केरोसिन ऑयल से बनता था। क्योंकि सरकारी सस्ते गल्ले की दुकानों पर कंट्रोल रेट पर बिकने वाले इस तेल में बड़ा खेल था। यही तेल माफिया केरोसिन के भी वितरक थे। आपूर्ति विभाग के साथ प्रशासनिक अधिकारियों की साठगांठ से गरीबों तक साल में छह माह ही केरोसिन मिलता था। आधा तेल नकली डीजल बनाने में प्रयोग हो जाता था। लेकिन बदली सरकारी नीति के बाद केरोसिन की आपूर्ति में काफी कमी आ गई और भविष्य में और भी आने वाली है। लेकिन आज भी जिले में 4.60 लाख लीटर केरोसिन हर माह आता है। लेकिन इसका 70 प्रतिशत ही सरकारी सस्ते गल्ले को आवंटित होता है। बाकी 30 प्रतिशत गायब कर दिया जाता है। केरोसिन जो सरकारी रेट पर करीब 32 रुपये प्रति लीटर मिलता है उसे व अन्य क्रूड आयल से डीजल बनता है।
पेट्रोल 50, डीजल 35 रुपये में तैयार
तेल माफिया और पेट्रोल पंप संचालकों को नकली तेल के धंधे में मोटी बचत है। नकली पेट्रोल 50-52 रुपये प्रति लीटर में तैयार कर माफिया इसे पेट्रोल पंप संचालक को 55-58 रुपये प्रति लीटर देता है। पेट्रोल पंप पर यह तेल वर्तमान दर (71 रुपये से ज्यादा) पर बिकता है। डीजल भी करीब 35 रुपये लीटर में तैयार होता है। जिसे माफिया 38-40 रुपये लीटर तक पेट्रोल पंप पर देते हैं। यही डीजल वर्तमान दर पर 65 रुपये से अधिक पर बिकता है।
कांडला बंदरगाह पर सेटिंग
गुजरात के कांडला बंदरगाह पर आयात होकर क्रूड ऑयल आता है। यह तेल सस्ता होता और इसमें केमिकल मिलाकर डीजल आसानी से तैयार हो जाता है। तेल माफियाओं ने यहां से इसके टैंकर मंगाने की पूरी सेटिंग की हुई है।
…सत्ता के गलियारे तक मजबूत पकड़
शहर में दो बड़े तेल माफियाओं की आला अधिकारियों से सत्ता के गलियारे तक पकड़ किसी से छिपी नहीं है। शासन में हर विभाग में तमाम ऐसे बड़े अधिकारी इनके खास होने के साथ इनके काले कारोबार को पूरा संरक्षण देते हैं। वहीं, सरकार चाहे किसी की रहे, इन्हीं अधिकारियों के बूते यह हर सरकार में सत्ता में पकड़ बना लेते हैं। इन तेल माफियाओं के निजी कार्यक्रमों में ये आला अधिकारी और नेता अक्सर देखे जा सकते हैं।
ई-वे बिल को बना रहे माध्यम
तेल माफियाओं की हर जगह सेटिंग है। जीएसटी में ईवे बिल की व्यवस्था है। जिसमें ट्रांसपोर्टर को टैंकर जाने की दूरी भी दर्शानी होती है। जैसे तेल माफिया ईवे बिल मुरादाबाद का तैयार कराते हैं और टैंकर में नकली तेल भरकर उसे गजरौला आदि के पेट्रोल पंपों पर सप्लाई कर देते हैं। तीन दिन तक यह ईवे बिल काम करने की आड़ में ये एक ईवे बिल के माध्यम से 3-4 चक्कर लगाते हैं। इसके बाद मुरादाबाद जाकर वहां से वाहनों के इंजन से निकला खराब काला तेल टैंकर में भरकर उसे हरियाणा के रिफाइनरी प्लांट में देते हैं। काले तेल की सप्लाई की आड़ में नकली तेल धड़ल्ले से सप्लाई होता है।
कई पहलू उजागर हुए
नकली तेल के कारोबार से जुड़े रहे एक पुराने व्यक्ति ने इस खेल के कई पहलू उजागर किए। उसके अनुसार ये नकली तेल एक नई तेल कंपनी के पेट्रोल पंपों पर ज्यादा खपाया जा रहा है। बड़ी तेल कंपनियां अपनी लैब में समय-समय पर तेल की जांच करती हैं। इनके अधिकारियों से सेटिंग आसान न होने पर इन कंपनियों के मात्र 10 प्रतिशत पेट्रोल पंपों पर ही ये नकली तेल खपाया जाता है। जबकि एक अन्य कंपनी के पेट्रोल पंपों पर इसकी 90 प्रतिशत तक खपत हो रही है। क्योंकि इस कंपनी के पास अपनी लैब नहीं है। ऐसे में सिर्फ आपूर्ति विभाग से साठगांठ कर इस पूरे खेल को तेल माफिया आसानी से अंजाम देते हैं। कुछ माफियाओं ने तो पेट्रोल पंप ठेके पर लिए हुए हैं, जिन्हें वह नकली तेल के सहारे मोटी कमाई का माध्यम बनाए हुए हैं। वहीं, नकली पेट्रोल-डीजल की शिकायतें आपूर्ति विभाग द्वारा साठगांठ से दबा दी जाती हैं।
आपूर्ति विभाग की भूमिका संदिग्ध
पेट्रोल पंपों पर नकली तेल धड़ल्ले से बिकता रहा और जिला आपूर्ति विभाग सोता रहा। भंडाफोड़ होने के बावजूद भी विभाग ने थिनर और सॉल्वेंट के लाइसेंस की जांच ठीक से नहीं कराई। पुलिस द्वारा लगाई सील भी सात घंटे बाद ही खुलवाने पर आपूर्ति विभाग की भूमिका संदिग्ध बनी है। व्यापारी राजीव जैन व प्रदीप गुप्ता ने अपनी केमिकल फैक्टरियों पर छापे के दौरान थिनर और सॉल्वेंट के लाइसेंस दिखाए थे। इसी से नकली तेल बनाने का दावा किया था। ये नकली तेल टैंकरों में भरकर पेट्रोल पंपों पर सप्लाई हो रहा था। सवाल है कि जिला आपूर्ति विभाग कहां सोया था। इतनी भारी मात्रा में नकली तेल सप्लाई होता रहा और विभाग को भनक भी नहीं लगी। पुलिस ने पर्दाफाश किया तो आपूर्ति विभाग की पोल खुल गई। नकली तेल बेचने वाले तीन पेट्रोल पंपों पर सील लगा दी। लेकिन आपूर्ति विभाग ने पुलिस अधिकारियों को बिना जानकारी दिए सील खोलकर सैंपल ले लिए।





