How can farmers trust on central government because neither income increased nor cost decreased
किसान की न आमदनी बढ़ी न लागत घटी, कैसे करे वो केंद्र सरकार पर भरोसा
- धान न्यूनतम समर्थन मूल्य से 500-1000 रुपये कम में निजी व्यापारियों ने खरीदा
- यूरिया के अधिक प्रयोग से मृदा में आवश्यक तत्वों का अनुपात बिगड़ा है
- दूसरी खाद के दाम पिछले छह साल में 30-40 फीसदी बढे हैं
किसान की न आमदनी बढ़ी न ही लागत घटी। आखिर वो कैसे केंद्र सरकार पर भरोसा करे? यह सवाल बनारस से सटे खालिसपुर गांव के किसान उमेश चौबे ने कड़क अंदाज में उठाया। वो कहते हैं कि आवारा पशुओं ने पशुधन को खराब किया और दूध से होने वाली आमदनी पर भी असर डाला। इसकी वजह से किसानों को खेती में भी नुकसान भी हो रहा है।
उमेश की इस बात से किसान नेता चौधरी पुष्पेंद्र सिंह भी सहमत हैं। वो कहते हैं कि केंद्र सरकार की किसान नीति जितना समस्या सुलझा रही है, उससे ज्यादा किसानी को उलझा रही है। हालत यह है कि डीजल का मूल्य आसमान छू रहा है। सरकार यह भी नहीं सोचती कि किसान डीजल से अपने खेत में पानी भरने वाली मोटर, ट्रैक्टर और हारवेस्टर चलता है। घरों में अब दोपहिया वाहन भी हैं। उत्तर प्रदेश में किसानों को बिजली का मूल्य भी तीन गुना चुकाना पड़ रहा है। ऊपर से डाय, पोटाश समेत दूसरी खाद काफी महंगी हो चुकी हैं।
एमएसपी पर सरकार खाद्यान्न बिकवाने की ही गारंटी ले
केंद्र सरकार ने सामान्य धान का समर्थन मूल्य 1800 रुपये प्रति क्विंटल तय कर रखा है। पुष्पेंद्र सिंह कहते हैं कि पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सामान्य धान 500 रुपये प्रति क्विंटल कम पर और बासमती 1000 रुपये के कम मूल्य पर बिका है। यही हाल देश की दूसरी मंडियों का भी है। आढ़तियों या निजी व्यापारियों ने एमएसपी से कम में धान खरीदा। पंजाब और हरियाणा के किसानों को इसकी और बड़ी समस्या झेलनी पड़ी होगी, इसलिए वे प्रदर्शन कर रहे हैं। पुष्पेंद्र सिंह ने कहा कि केंद्र सरकार चाहे खुद खाद्यान्न खरीदे या निजी कंपनियों और व्यापारियों से खरीदवाए। लेकिन न्यूनतम समर्थन मूल्य या इससे ऊपर की दर पर खरीदने की बाध्यता सुनिश्चित होनी चाहिए।
आवारा पशुओं से खेती पर असर
पशुधन किसान की एक तिहाई आमदनी का जरिया है। किसान को नई गाय लेनी होती है तो वह पुरानी गाय को बेचकर कुछ पैसे जोड़कर नई गाय ले आता है। गाय दूध देती है और एक वक्त का दूध वह बेचता है, दूसरे वक्त का घर के इस्तेमाल में लाता है। इससे उसे बड़ी राहत मिल जाती है। अब पुरानी गाड़ी, टूटी साइकिल, लोहे आदि का भाव तो मिल जाता है, लेकिन पुरानी गाय, उसका बछड़ा कोई नहीं लेता। यह सीधा नुकसान है। दूसरा बड़ा नुकसान यह है कि उत्तर प्रदेश के हर गांव में आवारा पशु फसल खा जाते हैं।
खाद के दाम बढ़े
मृदा का स्वास्थ्य भी अत्यंत आवश्यक है। खेती में निपुण अंबेडकर नगर के मोती सिंह कहते हैं कि खेत में नाइट्रोजन, पोटाश, फास्फोरस समेत अन्य का समुचित अनुपात होना चाहिए। वहीं पुष्पेंद्र सिंह का कहना है कि यूरिया के अधिक प्रयोग से मृदा में आवश्यक तत्वों का अनुपात बिगड़ा है। लेकिन किसान क्या करे? नीम कोटेड यूरिया उसे कम दाम पर मिल जाता है, वहीं दूसरी खाद के दाम पिछले छह साल में 30-40 फीसदी बढ़ चुके हैं।
इसके सामान्तर किसान की उपज में बढ़ोतरी नहीं हुई। ऊपर से बिजली का बिल बढ़ चुका है और अन्य खर्चे काफी बढ़ गए हैं। इसलिए वह धड़ल्ले से यूरिया का पहले की तरह इस्तेमाल कर रहा है। फसल बीमा योजना की भी यही स्थिति है। अब किसानों में इसके प्रति तेजी से दिलचस्पी घटी है। कारण साफ है कि किसानों को लाभ नहीं नजर आ रहा है। वहीं बीमा कंपनियों का मुनाफा बढ़ रहा है। हालांकि केंद्र सरकार ने एक राहत दे दी है। पहले जिसका किसान क्रेडिट कार्ड बनता था, उसमें से फसल बीमा का प्रीमियम कट जाता था। अब इसमें कुछ सुधार हुआ है।
क्या 2022 तक किसान की आमदनी दोगुनी होगी?
किसान नेताओं और खेती, खलिहानी के जानकारों को इसमें संदेह है। चौधरी पुष्पेंद्र सिंह ने किसानों को छह हजार रुपये सालाना देने के केंद्र सरकार के निर्णय को अच्छा बताया है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि राशि काफी कम है, इसे कम से कम 24000 रुपये सालाना होना चाहिए। यह उसके मूल लागत से काफी कम है। इसलिए लागत को लेकर ही बड़ा विरोधाभास है।
दूसरे किसान की आमदनी कहां से होगी? उसे न तो सस्ती खाद मिल रही है, न बिजली, पानी, डीजल। मंडी तक खाद्यान्न या उपज ले जाने से लेकर खाद, अनाज के बीच, ट्रैक्टर, हारवेस्टर, पानी के इंजन पर उसे काफी अधिक खर्च करना पड़ रहा है। इसलिए मुझे ऐसा हो पाने में संदेह नजर आ रहा है। यहां किसान के छले जाने की ही गुंजाइश ज्यादा है।





