Deepak Yadav, Director, Vidya Sagar International School
आत्मसंयम से जीवन सफल बना सकते हैं छात्र : दीपक यादव, निदेशक, विद्या सागर इंटरनेशनल स्कूल
मानव से दैनिक कार्यों में अनेक प्रकार की गलतियां होती हैं। उन गलतियों के बारे में सोचकर खुद को कोसते रहते हैं। किसी भी व्यक्ति को बोलते समय एवं कुछ कार्य करते हुए आत्मसंयम रखना चाहिए। वास्तव में आत्मसंयम एक ऐसी चाबी है, जिसके जरिये अपने जीवन को त्रुटिविहीन बना सकते हैं। आत्मसंयम को धारण करने वाले व्यक्ति के जीवन में गलतियों की संभावना नहीं के बराबर होती है।
एक शिक्षाविद् होने के नाते मेरी इच्छा रहती है कि छात्र अपने जीवन में आत्मसंयम को विशेष स्थान दें, क्योंकि यह उनके जीवन बनाने का दौर है। आप जैसा चाहेंगे वैसा इस जीवन को रच सकते हैं। इस किशोरावस्था में आप जैसी आदतों को अपने जीवन में डालना चाहें वैसे डाल सकते हैं। यह आपके जीवन भर काम आएंगी। इसलिए आत्मसंयम को छात्र जीवन में अपना विशिष्ट गुण बना लें तो आने वाला भविष्य निश्चित तौर पर सफल बना सकते हैं। विश्व के महान पुरुषों ने आत्मसंयम से जीवन में सफलता, उन्नति, श्रेय, महानता, आत्म कल्याण की प्राप्ति की। उन्होंने संयम के पथ पर अग्रसर होकर ही अपने जीवन को महान बनाया। इसमें कोई संदेह नहीं कि आत्मसंयम के पथ पर चल कर ही मनुष्य सही मानव बनता है। ऐसे लोग दूसरे के लिए प्ररेणास्त्रोत बनते हैं। वास्तव में अपनी मानसिक वृत्तियों, बुरी आदतों एवं वासनाओं पर काबू पाना ही आत्मसंयम के पथ पर अग्रसर होना है, जिससे मनुष्य की शक्तियों का हृास न होकर केंद्रीयकरण होने लगता है।
अपने विकारों पर नियंत्रण करने तथा हानिकारक आदतों से छुटकारा पाने के लिए किए जाने वाले प्रयास आत्मसंयम कहलाते हैं। यह कार्य इतना सरल नहीं है जितना कि केवल इसके अर्थ को समझ लेना। अपनी एक छोटी सी बुरी आदत अथवा मानसिक विकार पर नियंत्रण कर लेना कितना मुश्किल होता है, यह वे लोग अच्छी तरह जानते हैं जो इस पथ पर चलते हैं। जो मानसिक विचार वासनाएं अथवा बुरी आदतें जितने समय से अपना घर किए होती हैं वे उतनी ही प्रबल होती हैं। आत्मसंयम के चाहने वालों को प्रतिदिन अपना निरीक्षण करते रहना अत्यावश्यक है। विचारों तथा कार्यों का परस्पर संबंध होता है। जैसे विचार होंगे, वह ही कर्म रूप में सामने आएंगे। बुरी विचारधारा से सदैव बचना चाहिए, साथ ही बुरे विचारों से किए जाने वाले कर्मों से दूर रहना आवश्यक है। आत्मनिरीक्षण के लिए प्रात: उठते समय एवं सायंकाल को सोते समय अपने दिनभर के कार्यों, विचारों का लेखा जोखा लेना चाहिए। सायंकाल को सोने के पूर्व अपने दिनभर के कार्यों एवं विचारों का निरीक्षण करना चाहिए। इस प्रकार आत्मनिरीक्षण के लिए डायरी बना लेनी चाहिए। इससे अपनी संयम साधना में काफी सहयोग मिलेगा। आत्मसंयम के लिए नैतिक बल बढ़ाना भी आवश्यक है। जैसे मनुष्य का नैतिक स्तर ऊंचा होता जाएगा, वैसे ही विचारों कार्यों में संयम बढ़ेगा। विपरीत संगति, स्थान, वातावरण का त्याग कर अच्छे व्यक्तियों, स्थानों एवं संस्थाओं का संग करना चाहिए। इच्छा शक्ति से कोई भी व्यक्ति अपने जीवन में आत्म संयमित कर सकता है और अपने मानवीय जीवन जीने के लक्ष्य में सफल हो सकता है। बस आपको जल्दबाजी अथवा अधीरता को त्यागना होगा।





