लखनऊ विश्वविद्यालय और बैंक की साठगांठ से खाते से उड़ाए एक करोड़ रुपये
लखनऊ विश्वविद्यालय में फर्जी मार्कशीट बनाए जाने के मामले का अभी पटापेक्ष भी नहीं हुआ था कि एक करोड़ से अधिक की जालसाजी भी उजागर हो गई। जालसाजों ने यूको बैंक में चल रहे विवि के खातों में सेंध लगाकर 11 चेकों की क्लोनिंग कर 1,09,82,935 रुपये निकाल लिए। जालसाजों ने यह रुपये अलग-अलग बैंकों में 11 फर्मों के नाम ट्रांसफर किए। इसके बारे में जब प्रबंधन को पता चला तो हड़कंप मच गया। प्रबंधन ने इस संबंध में हसनगंज थाने में मुकदमा दर्ज कराया है।
जालसाजों ने लखनऊ विश्वविद्यालय के खाते से उड़ाए एक करोड़ रुपये, चेक क्लोनिंग कर लगाया चूना
एसएसपी कलानिधि के निर्देश पर सीओ महानगर सोनम कुमार, इंस्पेक्टर हसनगंज धीरेंद्र प्रताप कुशवाहा और क्राइम ब्रांच समेत चार टीमें मामले की जांच में लगी हैं। पूरे प्रकरण में विवि और बैंक कर्मचारियों की भूमिका संदेह के घेरे में है। गुरुवार को विवि के कुलपति प्रो. एसपी सिंह ने प्रेस वार्ता कर पूरे मामले की जानकारी दी।
पूरे मामले में विश्वविद्यालय प्रशासन की भी बड़ी लापरवाही उजागर हुई है। एक साल तक यूनिवर्सिटी के खाते से पैसे निकाले जाते रहे, लेकिन प्रशासन को इसकी भनक तक नहीं लगी। वहीं मामला उजागर होने पर प्रेस वार्ता करके एलयू प्रशासन ने अपना पल्ला झाड़ने की कोशिश की। पूरे प्रकरण में लविवि प्रशासन और बैंक की मिलीभगत होने की आशंका साफ नजर आ रही है।
करोड़ों के घालमेल में इस सवालों के कटघरे में लखनऊ विश्वविद्यालय, नहीं दी थी बैंक को कोई सूचना
सरकारी पैसों के हिसाब किताब और लेखा-जोखा की जिम्मेदार जिसे दी गई, उसे किश्तों में खाते से गायब हो रही रकम की जानकारी न हो सकी। यह कैसे संभव है? बैंक प्रत्येक माह खाते का ब्योरा लखनऊ विश्वविद्यालय को देता रहा। ताकि ट्रांजेक्शन संबंधी जानकारी विश्वविद्यालय प्रशासन को हो सके। ऐसे में लविवि प्रशासन द्वारा मामले को सिर्फ क्लोनिंग करार देकर पल्ला झाडऩा है।
केंद्र सरकार हो या राज्य सरकार। आम जनमानस के पैसों का दुरुपयोग न हो इसके लिए हर संभव प्रयास कर रही ही। डिजिटल ट्रांजेक्शन पर अधिक से अधिक जोर दिया जा रहा है। ऑनलाइन होने वाले सस्पेक्टेड ट्रांजेक्शन की भी बराबर निगरानी की जा रही है। वहीं इस दौर में लखनऊ विश्वविद्यालय द्वारा यह प्रचार किया जाना कि वर्ष 2000 की चेक की क्लोनिंग कर 2019 में खाते से रकम निकाल लिया गया, समझ से परे हैं। तनिक देर यदि लविवि प्रशासन के बयान पर यकीन कर भी लिया तो जानकार इस बात का दावा करते हैं कि इतना बड़ा घालमेल बिना विवि के मिली भगत के संभव नहीं।
सवालों के घेरे में लखनऊ विश्वविद्यालय
- क्या 19 वर्ष तक हस्ताक्षर कर्ता अधिकारी समान थे? यदि समान नहीं थे तो चेक कैसे पास हो गया ? मतलब यह है कि अधिकारियों के बदलते ही बैंक में सिग्नेचर कार्डं बदल दिए जाते है। ऐसे में संभव ही नहीं है कि वर्ष 2000 की चेकों से 2019 में भुगतान हासिल किया जा सके।
- पिछले 19 वर्षों में बैंक चेक की सुरक्षा नियमों में काफी बदलाव हुए हैं। जैसे चेक का साइज, चेक का रंग, सीटीएस सुरक्षा मानक, एमआइसीआर आदि।
- 2000 में अधिकांश बैंकें मैनुअल रहीं हैं। यूको बैंक वर्ष 2005 के बाद सीबीएस हुई है। ऐसे में लविवि का दावा अपने आप में ही हास्यास्पद है।





