हरियाणा में कांग्रेस को मिली ऑक्सीजन, सैलजा बनीं प्रदेशाध्यक्ष, हुड्डा चुनाव प्रबंधन समिति के चेयरमैन
हरियाणा में विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस हाईकमान ने संगठन में बड़ा बदलाव किया है। कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष पद से अशोक तंवर और कांग्रेस विधायक दल के नेता पद से किरण चौधरी की छुट्टी कर दी गई है। राज्यसभा सांसद कुमारी सैलजा को हरियाणा कांग्रेस का नया अध्यक्ष बनाया गया है, जबकि पूर्व सीएम हुड्डा को चुनाव प्रबंधन समिति का चेयरमैन नियुक्त करने के साथ ही सीएलपी लीडर व नेता विपक्ष की जिम्मेदारी भी सौंपी गई है।
कांग्रेस महासचिव व हरियाणा प्रभारी गुलाम नबी आजाद ने एआईसीसी मुख्यालय दिल्ली में कांग्रेस महासचिव, संगठन केसी वेणुगोपाल की मौजूदगी में इसकी घोषणा की। कांग्रेस आलाकमान की घोषणा के साथ ही प्रदेश में चुनावी कमान हुड्डा और सैलजा के हाथ में आ गई है। चुनाव पूर्व सीएम हुड्डा की अगुवाई में ही लड़े जाएंगे, जबकि सैलजा संगठन का जिम्मा संभालेंगी।
दोनों नेताओं पर कार्यकर्ताओं में नया जोश उत्पन्न करने और चुनाव के लिए सभी गुटों को एकजुट करने का भी जिम्मा रहेगा। चूंकि, प्रदेश में कांग्रेस छह गुटों में बंटी हुई है। भाजपा को विधानसभा में कांग्र्रेस एकजुट होकर ही कड़ी टक्कर दे सकती है। हुड्डा को कमान मिलने से तेरह समर्थक विधायकों और अनेक पूर्व विधायकों, मंत्रियों में नए रक्त का संचार होगा।
हुड्डा कैंप जहां चुनाव जीतने के लिए पूरी ताकत झोंकेगा। वहीं खुद हुड्डा के सामने भी विधानसभा चुनाव में खुद को साबित कर कांग्रेस को दोबारा सत्ता में लाने की बड़ी चुनौती है। चूंकि, भाजपा का चुनाव प्रचार कांग्रेस से कहीं आगे निकल चुका है। भाजपा 75 प्लस का लक्ष्य लेकर मैदान में उतर चुकी है, जबकि कांग्रेस चुनावी तैयारियों में पिछड़ी हुई है।
धरातल पर संगठन कमजोर है। बीते लोकसभा चुनाव में दस की दस सीटें हारने के पीछे संगठन का न होना भी बड़ा कारण रहा था। ऐसे में अब सैलजा को चुनाव से एकदम पहले संगठन को चुस्त-दुरुस्त कर कार्यकर्ताओं को फील्ड में उतारना होगा तो हुड्डा को जीत के लिए चुनावी बिसात बिछानी होगी। लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद हुड्डा विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज कर हाईकमान के सामने अपना कद बरकरार रखने की कोशिश करेंगे।
एकजुट होकर चुनाव लड़ भाजपा को सत्ता से करेंगे बाहर: आजाद
प्रदेश प्रभारी गुलाम नबी आजाद ने हुड्डा और सैलजा के नेतृत्व में विधानसभा चुनाव जीतने का भरोसा जताया है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस एकजुट होकर लड़ेगी और भाजपा को सत्ता से बाहर किया जाएगा। विधानसभा चुनाव के मद्देनजर यह महत्वपूर्ण बदलाव है। आज जो नियुक्ति हुई हैं, ये भविष्य में कांग्रेस बनाने और चुनाव लड़ाने के लिए हैं।
शैलजा के घर से हुड्डा की बेटी की डोली की विदाई अब दिखाएगी सियासी रंग
कुमारी शैलजा के घर से उठी भूपेंद्र सिंह हुड्डा की बेटी की डोली ने 15 साल पहले दोनों के बीच रिश्तों की जो इबारत लिखी थी, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने उसे आज हरियाणा कांग्रेस के इन दोनों धुर विरोधी नेताओं के सियासी गठबंधन में बदल दिया। पार्टी की दशा दुर्दशा से कल तक निराश रहने वाले हरियाणा के कांग्रेसी भी मानने लगे हैं कि शैलजा और हुड्डा की जोड़ी अगर सही ढंग से काम कर गई तो विधानसभा चुनावों में भाजपा और कांग्रेस के ही बीच सीधा मुकाबला होगा।
हुड्डा होंगे जाटों की पहली पसंद
क्योंकि चौटाला परिवार की आपसी लड़ाई की वजह राज्य के 27 फीसदी जाटों की पहली पसंद अब भूपेंद्र सिंह हुड्डा ही होंगे और वहीं प्रदेश की करीब 20 फीसदी दलित आबादी में कुमारी शैलजा और उनके पिता की लोकप्रियता कांग्रेस के परंपरागत दलित जनाधार को एकजुट कर सकती है। लोकसभा चुनावों की करारी हार और अध्यक्ष पद से राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद से सन्निपात में आई कांग्रेस ने आज अपने एक बड़े पेंच को सुलझा लिया है।
यह पेंच हरियाणा को लेकर था, जहां लंबे समय से प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अशोक तंवर और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के बीच लगातार टकराव जारी था और जिसका खामियाजा लोकसभा चुनावों में भी पार्टी के सफाए के रूप में सामने आया। इसके बाद भूपेंद्र सिंह हुड़डा लगातार हरियाणा में कांग्रेस अध्यक्ष को बदलने का दबाव बना रहे थे और इधर कुछ महीनों से उनके तेवरों से लग रहा था कि अगर हाईकमान ने नहीं सुनीं तो वह अपना रास्ता अलग भी कर सकते हैं।
लेकिन अब कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने न सिर्फ हुड्डा को मना लिया बल्कि हरियाणा प्रदेश कांग्रेस में नेतृत्व परिवर्तन करके कुमारी शैलजा को कमान सौंप कर कांग्रेस के परंपरागत दलित जनाधार को भी अपने साथ जोड़े रखने का दांव चल दिया है। साथ ही हुड्डा को विधानसभा में कांग्रेस विधायक दल का नेता और राज्य चुनाव समिति का अध्यक्ष बनाकर जाटों को साधने की भी कोशिश की है। हरियाणा की राजनीति में आम तौर पर कुमारी शैलजा और भूपेंद्र सिंह हुड्डा को एक दूसरे का धुर विरोधी माना जाता है।
दस वर्ष केंद्र की यूपीए सरकार के दौरान शैलजा केंद्रीय मंत्री थीं, तो हुड्डा हरियाणा के मुख्यमंत्री और अक्सर उनके बीच टकराव की खबरें मीडिया में आती रहती थीं। यहां तक कि हुड्डा के विरोधी दूसरे कांग्रेसी नेता भी शैलजा के साथ गोलबंद होते रहे हैं। लेकिन यह बहुत कम लोगों को पता होगा कि 2004 में हुड्डा की बेटी की शादी जब दिल्ली में हुई थी तो खुद शैलजा ने आगे बढ़कर हुड्डा से आग्रह किया था कि यह शादी सुनहरी वाग रोड स्थिति उनके सरकारी आवास से होगी और हुड्डा ने उसे माना और उनकी बेटी अंजलि की शादी भी शैलजा के घर से हुई और डोली में बैठकर अंजलि विदा भी वहीं से हुई। इसलिए हुड्डा और शैलजा के बीच रिश्तों की इस पुरानी डोर को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने सियासी समझदारी में बदल दिया है।
कांग्रेस को मिली ऑक्सीजन
कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक यह इसलिए मुमकिन हो सका क्योंकि पार्टी की कमान सोनिया गांधी के हाथों में है, अगर राहुल गांधी के हाथ में होती तो उनकी नई नवेली कोटरी अशोक तंवर को बदलने की बजाय हुड्डा और शैलजा को ही किनारे लगाती भले ही विधानसभा चुनाव में पार्टी दहाई से इकाई सीटों पर निबट जाती। लेकिन अब बदले समीकरण से कांग्रेस को आक्सीजन मिल गई है और अगर पार्टी ने अपने पत्ते ठीक से चले तो मुकाबला भी भाजपा और कांग्रेस के ही बीच सीधा होगा।
हुड्डा और शैलजा की नियुक्तियों से हरियाणा की राजनीति में कांग्रेस जाटों और दलितों का मजबूत गठबंधन बनाने की कोशिश करेगी, जबकि भाजपा को कांग्रेस और इनेलो के दोनों धड़ों के बीच जाट वोटों के बंटवारे और अपने साथ गैर जाट वोटों के ध्रुवीकरण, मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की ईमानदार साफ सुथरी छवि, अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को हटाने से पैदा हुई राष्ट्रवादी भावना और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की करिश्माई छवि के बल पर दूसरी बार अपनी सरकार बनाने का पूरा भरोसा है। बताया जाता है कि हरियाणा कांग्रेस में सियासी वर्चस्व को लेकर चलने वाली लड़ाई में कांग्रेस मीडिया विभाग के संयोजक रणदीप सुरजेवाला भी एक ध्रुव हैं।
सुरजेवाला का बढ़ता गया कद
रणदीप के पिता शमशेर सिंह सुरजेवाला कभी हरियाणा में कांग्रेस के दिग्गज नेता हुआ करते थे और लंबे समय तक वह कांग्रेस की किसान सेल के अध्यक्ष भी रहे। लेकिन भजनलाल के बाद जिस तरह भूपेंद्र सिंह हुड्डा का कद बढ़ा और शमशेर सिंह सुरजेवाला की उम्र बढ़ी उससे वह पीछे छूट गए। रणदीप सुरजेवाला ने बतौर युवक कांग्रेस अध्यक्ष कांग्रेस की युवा राजनीति में अपने आक्रामक तेवरों से और इनेलो अध्यक्ष ओम प्रकाश चौटाला के खिलाफ चुनाव लड़कर अपनी जुझारू छवि बनाई और जैसे जैसे कांग्रेस में राहुल गांधी की भूमिका बढ़ी रणदीप सुरजेवाला का कद भी बढ़ा और जल्दी ही वह कांग्रेस की आवाज बन गए।
राहुल से निकटता और अपने बढ़े हुए कद के बाद रणदीप को हरियाणा में हुड्डा के विकल्प के तौर पर भी देखा जाने लगा। राहुल की टीम के नए रणनीतिकारों ने हरियाणा की राजनीति में हुड्डा परिवार के वर्चस्व को तोड़ने के लिए ही युवक कांग्रेस के अध्यक्ष रहे अशोक तंवर को प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनवाया। कहा जाता है कि तंवर को रणदीप सुरजेवाला का आशीर्वाद और संरक्षण मिलता रहा। लेकिन तंवर अपेक्षित नतीजे नहीं दे पाए और खुद रणदीप भी जींद उपचुनाव में बुरी तरह हार गए। इससे हुड्डा ने हाईकमान पर अपना दबाव बढ़ा दिया।
हुड्डा से हुई सोनिया की लंबी बातचीत
लेकिन लोकसभा चुनावों में सोनीपत से भूपेंद्र सिंह हुड्डा और रोहतक से उनके बेटे दीपेंद्र हुड्डा की हार ने उनकी आवाज को भी कमजोर किया। इधर कांग्रेस में राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद तीन महीने तक नए अध्यक्ष को लेकर रस्साकसी चलती रही। आखिर जब सोनिया गांधी ने फिर से कांग्रेस अध्यक्ष पद संभाला तो उन्होंने लगातार हरियाणा में सभाएं कर रहे हुड्डा को बुलाकर लंबी बातचीत की और फिर शैलजा और हुड्डा के बीच आपसी समझदारी बनी, जिसके बाद शैलजा को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और भूपेंद्र सिंह हुड्डा को कांग्रेस विधायक दल का नेता और प्रदेश चुनाव समिति का अध्यक्ष बनाया गया।
शैलजा को अध्यक्ष बनाकर कांग्रेस ने दलितों की नाराजगी से भी खुद को बचा लिया। क्योंकि अगर दलित अशोक तंवर को हटाकर हुड्डा या किसी और गैरदलित को प्रदेश पार्टी की कमान दी जाती तो उस पर दलित विरोधी होने का आरोप लगता और बसपा इसे विधानसभा चुनाव में मुद्दे के रूप में उछालती, जिसका नुकसान हो सकता था।
लेकिन शैलजा न सिर्फ दलित हैं बल्कि महिला भी हैं और उनके पिता भी हरियाणा कांग्रेस के कद्दावर दलित नेता रहे हैं। इसलिए अंबाला से लेकर सिरसा तक के इलाके में शैलजा का आधार है और प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद पूरे हरियाणा में दलितों में शैलजा के जरिए कांग्रेस अपनी पैठ बनाने की कोशिश करेगी जबकि रोहतक सोनीपत हिसार की जाट पट्टी से लेकर पूरे हरियाणा में जाटों के बीच हुड्डा कांग्रेस के खेवनहार बनेंगे।
हरियाणा कांग्रेस में बड़े बदलाव, सैलजा को पार्टी की कमान, हुड्डा चुनाव कमेटी और विधायक दल के प्रधान
हरियाणा कांग्रेस में बड़े बदलाव के किए गए हैा। राज्य कांग्रेस के अध्यक्ष डॉ. अशोक तंवर की जगह पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी सैलजा को हरियाणा कांग्रेस की कमान दी गई है। इसके साथ ही पार्टी आलाकमान पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को हरियाणा विधानसभा चुनाव में चुनाव अभियान कमेटी का चेयरमैन बनाया गया है। हुड्डा किरण चौधरी की जगह कांग्रेस विधायक दल के प्रधान भी होंगे।
यह घोषणा कांग्रेस के हरियाणा प्रभारी गुलाम नबी आजाद ने की। आजाद ने कहा कि कुमारी सैलजा हरियाणा कांग्रेस की नई अध्यक्ष होंगी और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा चुनाव कमेटी के प्रधान और कांग्रेस विधायक दल के नेता होंगे। इसके साथ ही हुड्डा हरियाणा विधानसभा में नेता विपक्ष भी होंगे। इससे पहले बुधवार को दोपहर बाद हुड्डा की सोनिया गांधी के साथ बैठक हुई। यह बैठक करीब दो घंटे तक चली। इसके बाद हरियाणा कांग्रेस में बदलाव का ऐलान किया गया।
सैलजा बोलीं- मेरे कंधे पर आई बड़ी जिम्मेदारी, सभी नेताओं को मिलकर काम करना होगा
हरियाणा कांग्रेस का अध्यक्ष नियुक्त किए जाने के बाद कुमारी सैलजा ने कहा, यह बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। मेरे कंधे पर पार्टी को राज्य में आगे बढ़ाने का बड़ा दायित्व है। पार्टी को खड़ा करने के लिए हम सभी को मिलकर काम करना होगा। हम पार्टी की विचारधारा के लिए प्रतिबद्ध हैं।
हुड्डा बोले- पार्टी के फैसले का सम्मान करता हूं, सोनिया जी ने मुझे यह जिम्मेदारी दी है
पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने अपनी नियुक्ति पर खुशी जताई। पत्रकारों से बातचीत में हुड्डा ने कहा, पार्टी ने जो निर्णय किया है उसका मैं सम्मान करता हूं। मैं समझता हूं सोनिया जी ने मेरे ऊपर भरोसा जताया है और जिम्मेदारी दी है।
कांग्रेस के इस कदम से पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर को कड़ा झटका लगा है। हुड्डा खेमा किसी भी कीमत पर तंवर को हटाना चाहता था। भूपेंद्र सिंह हुड्डा इसके लिए आलाकमान पर काफी समय से दबाव बना रहे थे। उन्होंने इसके लिए बागी तेवर भी दिखाए थे। इसके साथ ही बताया जा रहा है कि पार्टी में कुछ कार्यकारी अध्यक्ष भी हो सकते हैं। पार्टी के वरिष्ठ नेता कुलदीप बिश्नोई, अजय सिंह यादव और किरण चौधरी को भी अहम जिम्मेदारी दिए जाने की संभावना है।
जानकारी के अनुसार, हुड्डा और सोनिया गांधी की मुलाकात नई दिल्ली में दस जनपथ पर हुई। इस दौरान हरियाणा कांग्रेस के प्रभारी गुलाम नबी आजाद सहित कई वरिष्ठ नेता भी मौजूद थे। बता दें कि कुमारी सैलजा कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व की करीबी मानी जाती हैं। पार्टी ने राजस्थान में विधानसभा चुनाव के दौरान उनको वहां की अहम जिम्मेदारी दी थी।
बता दें कि हरियाणा कांग्रेस में अशोक तंवर और हुड्डा खेमे में अरसे से घमासान मचा हुआ है। इसे समाप्त कराने के लिए पार्टी नेतृत्व द्वारा किए गए सभी प्रयास विफल रहे। हुड्डा चाहते थे कि तंवर को हटाकर उनको हरियाणा कांग्रेस की कमान दे दी जाए। कांग्रेस आलाकमान ने हुड्डा की मांग नहीं मानी तो उन्होंने बागी तेवर भी दिखाए और 18 अगस्त को राेहतक में महापरिवर्तन रैली की कांग्रेस से अलग राह अपनाने के भी संकेत दिए थे।
रैली में आगे की सियासी राह पर विचार करने लिए हुड्डा ने कमेटी बनाने की घोषणा कर दी। इसके बाद भी आलाकमान ने तव्वजो नहीं दी तो भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने 38 सदस्यीय कमेटी बना दी और कहा कि कमेटी जो तय करेगी वह उसी सियासी राह को अपनाएंगे। बाद में उनकी कमेटी की एक सदस्य शारदा राठौर भाजपा में शामिल हो गईं।
ज्यादातर समर्थकों ने कांग्रेस में ही रहने की हुड्डा को दी थी सलाह
इसके बाद हुड्डा ने मंगलवार को 37 सदस्यीय कमेटी में शामिल नेताओं की बैठक बुलाई और अपनी अगली रणनीति के लिए राय ली। बैठक में उनके ज्यादातर समर्थकों ने अलग पार्टी बनाने के प्रस्ताव को सिरे से खारिज कर दिया और कांग्रेस में ही रहने की सलाह दी। हुड्डा के गढ़ रोहतक, सोनीपत और झज्जर के समर्थक नेताओं की राय छोड़ दें तो अन्य जिलों के नेताओं ने अलग पार्टी बनाने की रणनीति से अपने को अलग रखा। ज्यादातर नेताओं ने हुड्डा को कांग्रेस में रहकर ही हाईकमान के अनुसार संगठन मजबूत करके अपने राजनीतिक हित साधने का सुझाव दिया।
हुड्डा ने राज्य विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष एचएस चड्ढा और कमेटी के संयोजक कांग्रेस विधायक उदयभान के साथ सभी नेताओं से अलग-अलग चर्चा की। बाद में पूर्व मंत्री कृष्णमूर्ति हुड्डा ने बताया कि कमेटी के सभी सदस्यों ने अंतिम फैसला पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा पर छोड़ दिया। बैठक के बाद पूर्व वित्त मंत्री संपत सिंह ने साफ तौर पर कहा कि राज्य में कांग्रेस की हालत काफी पतली है। अब कांग्रेस संगठन सिर्फ मरहम-पट्टी से मजबूत नहीं हो सकता। पांच साल तक राज्य में कांग्रेस की जिला और ब्लॉक स्तर पर इकाई नहीं रही है। ऐसे में बिना संगठन के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस कोई खास करिश्मा नहीं कर पाएगी। इसलिए पार्टी हाईकमान को राज्य संगठन में बड़ा ऑपरेशन करना होगा।





